सफर - मौत से मौत तक….(ep-15)
हिंदी के शिक्षक प्रधानाध्यापक के कमरे में शोर सुनकर वही आ पहुँचे। उन्हें ये तो पता था कोई खतरनाक बातपर झगड़ा चल रहा है, लेकिन ये नही मालूम था कि उसी के कारण ये सब हो रहा था।
श्रीमान राणा जी हिंदी के अध्यापक थे, हिंदी के अलावा संस्कृत और इतिहास में भी रुचि थी और बच्चो को पढ़ाते थे।
राणा जी कमरे में आये और कभी शुक्ला सर का मुंह ताकते तो कभी नंदू का, नंदू ने उन्हें देख तो लिया था मगर वो ये नही जानता था ये ही हिंदी का शिक्षक है।
प्रधानाचार्य ने हिंदी के शिक्षक को देखा और कहा- "आइए राणा जी, स्वागत है आपका"
नंदू की तरफ देखते हुए राणा जी बैठ गए और पीछे खड़े समीर की तरफ भी देखा और तपाक से बोल पड़े- "अच्छा , माफ कीजिये मैंने आपको पहले पहचाना नही था, आप समीर के पिताजी है।" राणा जी ने कहा।
"जी हाँ, समीर मेरा बेटा है।" नंदू शांत होते हुए बोला।
शुक्ला जी की तरफ देखते हुए नंदू बोला- "एक बार मेरे सामने बुलाईये मास्टरजी को, मैं एक बार उनसे कुछ बात करना चाहता हूँ।"
शुक्ला जी और हंगामा नही चाहते थे, इसलिए उन्होंने बात को टालते हुए कहा- "उन्हें मैं समझा दूँगा, आप चिंता मत कीजिये दोबारा शिकायत का मौका नही मिलेगा"
"किसकी बात हो रही है, अगर ये चाहते है तो एक बार बुला लो, अब आपके समझाने और इनके समझाने में फर्क भी तो होगा" राणा जी बोल पड़े, उन्हें बिल्कुल भी अंदाजा नही था कि उन्ही को बुलाने की बात चल रही है।
"राणा जी जब पूरी बात पता नही हो तो बीच मे नही बोलना चाहिए…" शुक्ला जी ने राणा जी से कहा और उसके बाद सिर झुकाए खड़े बालक समीर की तरफ देखकर उससे कहा- "बेटा आप जाओ अपनी क्लास में, हम है ना आपके साथ, आज से आपको कोई कुछ नही बोलेगा"
समीर देखकर हैरान था, प्रिंसिपल सर क्यो नही अपने पापा को, प्रिंसिपल सर के माथे पर पसीना ला दिये थे उसके पापा, शायद पहली बार उसने अपने पापा का ये रूप देखा था।
समीर के जाने के बाद शुक्ला जी ने नंदू से कहा- "आपका बेटा एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा….इसलिए नही की वो पढ़ने लिखने में तेज है, बल्कि इसलिए क्योकि उसके पास आप जैसे पापा है, आप एक ऐसे पहले व्यक्ति है जिन्होंने मेरे कमरे में आकर इतनी हीम्मत दिखाई, इस तरह आवाज उठाई की मैं उस आवाज को दबा भी नही सकता"
नंदू ने अब बहुत ही सहजता से कहा - "मैं माफी चाहता हूँ ऊंची आवाज में बात करने के लिए, लेकिन गुरुजी, मैं कम खाकर, अपने सारे शौक को कुर्बान करके अपने एक सपने को पूरा करना चाहता हूँ, मेरा एक ही सपना है मेरा बेटा अच्छा पढ़ लिखकर एक बड़ा आदमी बने, जैसी गरीबी मैंने देखी है, जैसे दुख झेले है, वो वैसे दिन कभी ना देखे, मैं दिन रात मेहनत करता हूँ और तब जाकर उसकी पूरी फीश देकर जाता हूँ, उसके बावजूद भी अगर कोई मेरे बेटे को ऐसा कहे कि तू रिक्शे वाले का बेटा है रिक्शा ही चलाएगा" तो बुरा तो लगेगा ही ना। आप एक बार प्यार से समझा दीजियेगा उनको, हो सकता है उन्होंने कोई अच्छी बात समझाने के लिए बोला होगा लेकिन बच्चे हमेशा अपने स्तर से हो सोचेंगे"
राणा जी के अब समझ आयी बात की उन्हें ही बुलाने की बात चल रही थी। राणा जी धीरे से उठकर वहाँ से खिसकने की सोचने लगे।
"ओह मेरी क्लास थी, मैं अभी निकलता हूँ" कुर्सी से उठते हुए राणा जी बोले।
शुक्ला जी ने राणा जी को रोकते हुए कहा- "अरे राणा….बैठो….आप बच्चो की क्लास बाद में लगाना, पहले आपकी क्लास लगानी है मैंने"
राणा जी थूक निगलते हुए वापस बैठे, राणा जी जानते थे प्रिंसिपल सर जब क्लास लगाते है तो खतरनाक ही क्लास लगाते है। वो सोचने लगे- "भगवान बचा लो आज, अपने बंदे की लाज रख लो"
नंदू ने जाना भी था, वैसे भी एक घंटा बर्बाद ही हुआ था।
"मैं चलता हूँ गुरुजी… और अगर मेरी किसी बात का बुरा लगा तो मुझे माफ़ कर देना" उठते हुए नंदू ने कहा।
शुक्ला जी भी खड़े उठते हुए -" चलो मैं आपको बाहर तक छोड़ देता हूँ…."
"नही उसकी कोई जरूरत नही है….आप अपना काम कीजिये….मैं चलता हूँ"
नंदू वहाँ दफ्तर से निकल पड़ा।
यमराज और नंदू अंकल ने भी ये सब सीन देखा, नंदू का अचानक गुस्से में आ जाना देखकर यमराज आज बीच मे कुछ नही बोल रहा था, लेकिन अब नंदू कमरे से बाहर जा चुका था। तो यमराज ने हीम्मत करके नंदू अंकल को थोड़ा हिलाते हुए कहा- "अंकल नंदू चले गया….हम भी चले"
यमराज की बात सुनकर नंदू हँस पड़ा- "अरे रुक तो जाओ…. उस दिन में इतनी बात करके चला गया था, घर जाकर समीर ने बताया था कि ये राणा जी वो मास्टर था जिसने उसे ये बात बोली थी। आखिर अगर राणा ही वो था तो मेरे सामने वो कुछ बोला क्यो नही, और शुक्ला जी ने उसकी क्लास भी लगाई या नही"
यमराज ने हैरानी से राणा जी की तरफ देखते हुए कहा- "अच्छा….तभी मैं सोचूं ये इतना घबराया हुआ क्यो है"
शुक्ला जी दफ्तर के द्वार को ढकते हुए राहत की सांस लेते हुए वापस अंदर की तरफ आये और राणा को घूरने लगा।
राणा जी शुक्ला जी से नजरके चुराते हुए बैठे रहे।
अब शुक्ला जी ने गुस्से से कहा "आखिर कब तक….कब तक तेरी गलतियों में पर्दा डालता रहूँगा मैं….रोज कोई ना कोई पंगे खड़े कर ही देता है तू…. एक तो तेरी दिदी के कहने पर तुझे बिना डिग्री की स्कूल मास्टर बना दिया, ऊपर से तु हिंदी भी ढंग से नही पढ़ा सकता"
"माफ कर दो जिजाजी…….मैंने तो बस ये कहा था कि जैसे डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, सिपाही का बच्चा सिपाही बन जाता है उसी तरह वो भी अपने पापा की तरह……"कहते कहते राणा जी चुप हो गए।
"अच्छा अगर ऐसा होता तो तू यहाँ क्या कर रहा है, जा गाँव अपने, गाय बकरियां चरा…… तेरे खानदान में भी कोई मास्टर रहा है कभी, मास्टर छोड़ ये बता तेरे बाबूजी ने पढ़ा कितना स्कूल" शुक्ला जी आप से बाहर हो रहे थे।
"बस कीजिये जिजाजी….अब आप मेरी बेइज्जती कर रहे है, वो मेरे पिताजी नही आपके ससुरजी भी है, मेरे पिताजी का ना सही कम से कम अपने ससुर जी की तो इज्जत करो" राणा जी बोले।
"आराम से बोल.….अगर किसी को पता चल गया कि तू मेरा साला है तो घर की बात बाहर आ जायेगी, और बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी" शुक्ला जी ने कहा।
"तो आप क्यो बाहर की बात घर पर ले जा रहे है, अब मैं आपका साला बाद में पहले इस स्कूल का हिंदी विषय का अध्यापक हूँ, ये दिदी का गुस्सा मुझपर मत निकाला करो…" राणा ने कहा।
"मेरी बात सुन ध्यान से, हिंदी पढ़ाने जाता है हिंदी ही पढ़ाना, ज्योतिष मत बन जाना वहाँ….वरना तेरा खुद का भविष्य अंधकार में चले जाएगा" शुक्ला जी ने लास्ट वॉर्निंग देते हुए कहा।
नंदू अंकल का मुंह खुला का खुला ही रह गया….
"ये क्या था….इस स्कूल में तो रिश्तेदारी निभाई जा रही है" यमराज ने कहा।
नंदू ने अपना नजरिया बदल के देखा और कहा- "रिश्तेदारियां नही मोह्हबत निभाई जा रही है।"
यमराज ने आश्चर्य से पूछा- "मोहब्बत….लेकिन यहाँ कहाँ मोहब्बत नजर आ रही है,"
"सोचो सोचो……" नंदू ने यमराज से कहा।
"मुझे तो समझ नही आया, कही से कही तक कोई मोहब्बत नही निभाई जा रही है" यमराज बोला
"लगा लो शर्त…. " नंदू तपाक से बोला।
"शर्त…… लेकिन क्यो? साफ साफ दिख रहा है दोनो रिश्तेदार है, रिश्तेदारी ही निभाई जा रही है, अगर राणा जी कोई मेडम होती तब मैं ये बात मान भी लेता" यमराज बोला
"चलो मैं तुम्हे समझाता….लेकिन पहले हार मान लो….क्योकि वैसे भी इसका जवाब तुम दे भी नही सकते" नंदू अंकल ने यमराज से कहा।
"मैं और हार……कभी नही……चलो कोई हिंट दो…इसमे मोहब्बत नजर आने की वजह बताओ" यमराज बोला।
"वजह ही मैं तुमसे पूछ रहा हूँ? मुझे पता है तुम हार नही मानोगे, बस में वक्त बर्बाद करोगे…." बाहर की तरफ रुख लेते हुए नन्दू बोला ।
यमराज भी नंदू के पीछे पीछे जाते हुए बोला- "अरे आगे नही देखना क्या….कहाँ जाने लगे"
नंदू दफ्तर से बाहर जाते जाते समीर की क्लास की तरफ चले गया जहाँ अभी गणित के अध्यापक क्लास में बैठे थे और सभी बच्चों को आज विषय से हटकर ज्ञान बांट रहे थे।
"देखो बच्चो….मेरा ये मानना है कि हमे उसी तरफ जाना चाहिए जहां हमारी रुचि होगी, जिस जगह रुचि नही उस जगह जाने का कोई फायदा नही है" जोशी जी ने कहा जो कि गणित के अच्छे अध्यापक है।
तभी समीर और उसका दोस्त नवीन दोनो कुछ फुसफुसाते हुए हँस पड़े।
मास्टर जी की नजर उन दोनों पर पड़ी तो अपनी छड़ी हाथ के लेते हुए बोले- "आप दोनो के क्यो मन में लड्डू फूटने लगे है….जरा हमे भी बताओ, हम लोग भी हँस लेंगे….क्यो बच्चो, आप भी हंसना चाहते हो या नही…."
मास्टर जी की बात सुनकर दोनो सिर झुकाकर बैठ गए जैसे उन्होंने कुछ किया ही नही हो, लेकिन फिर भी उनकी हँसी नही रुक रही थी
सभी बच्चे एक स्वर में चिल्लाए -"चाहते है"
"अरे! चाहते है क्या हुआ….पूरी बात बोलो हँसना चाहते है" जोशी जी ने कहा।
सभी बच्चे दोबारा चिल्लाए - "हँसना चाहते है"
दोनो के अलावा बाकी सब के चेहरे में रौनक थी, बस वो दो ही थोड़ा डरे हुए थे।
"खड़े उठ जाओ तुम दोनो" जोशी जी बोले।
तभी यमराज भी पीछे से आते हुए नंदू अंकल के कंधे में हाथ रखता है।
"बताओ ना अंकल?" यमराज ने अपना सवाल बिना दोहराए जबाब मांगा।
"शशशश………."अपने होंठ में उंगली रखते हुए नंदू अंकल ने यमराज को चुप रहने को कहा।
"लेकिन आप यहाँ क्या देख रहे है" कहते हुए यमराज ने सामने देखा तो समीर और उसका एक दोस्त खड़े थे।
अब यमराज भी देखने लगा,
"लगता है मेरे समीर को मास्टरजी छड़ी से पिटेंगे" नंदू दुखी स्वर में बोला।
"नही पिटेंगे" यमराज ने कहा।
"गलती की है उन्होंने, और समीर बताता था कि उनके गणित के अध्यापक बहुत खतरनाक है" नंदू ने कहा।
"लगा लो शर्त नही पिटेंगे" यमराज ने कहा।
"अगर पिट दिया तो…." नंदू बोला।
"देखो अगर पिट दिया तो आपकी मर्जी की आपने मेरे सवाल का जवाब देना है या नही….और अगर नही पीटा तो आपको बिना किसी बहाने के सच सच बताना होगा कि शुक्ला जी ने राणा जी को रिश्तेदारी नही मोहब्बत के खातिर नौकरी में रखा है आपको ऐसा क्यो लगता है?" यमराज ने कहा।
यमराज के लिए ये एक तरह से जुआ ही था, ना अपनी जीत तय थी ना हार, कुछ भी हो सकता था, लेकिन उसके मन मे जिज्ञासा थी कि आखिर नंदू अंकल ने उसे मोहब्बत के खातिर क्यो कहा।
मास्टर जी ने दोनो को आगे बुलाते हुए कहा- "अगर आप दोनो को शर्म आ रही है, तो आगे मेरे पास आ जाओ"
नंदू आगे जाने लगा था कि यमराज ने उसका बाजू पकड़ लिया- "अरी अंकल वो हम दोनों को नही, समीर और नवीन को बुला रहे है"
नंदू ने अपना माथा ठनका और कहा- "अरी हाँ….वैसे भी वो तो हमे देख और सुन नही सकता….ये बात तो मैं बार बार भूल जाता हूँ"
"भुल्लकड़ हो गए है आप…." यमराज बोला
नंदू कुछ कहता कि मास्टर बोल पड़े- "आते हो या मैं आऊ"
सर की बात से अचानक ही समीर डर गया और फत से बोल पड़ा - "सर ये नवीन बोल रहा था नाआआ……."
"हाँ क्या बोल रहा था" जोशी जी ने पूछा।
तभी नवीन ने भी अपनी सुरुली आवाज निकालते हुए कहा- "सर ये झूठ बोल रहा है, मैंने नही इसने कहा था"
उसकी तरफ देखते हुए समीर बोला- "मैने कब बोला रे….मैंने तो ये कहा कि रुचि हमारे क्लास में पढ़ती नही है……फिर तूने ही कहा कि रुचि छठवीं में पढ़ती है,और हमे भी वही जाना चाहिये…."
नवीन अब और ऊंची आवाज में सारा इल्जाम वापस समीर के ऊपर डालते हुए बोला- "लेकिन शुरू तो तूने किया ना, तूने पहले कहा कि रुचि हमारे क्लास में नही पढ़ती, तब मैने कहा"
"लेकिन उधर जाने वाली बात तो तूने बोली" समीर बोला।
दोनो आपस मे झगड़ने लगे और सारा इल्जाम एक दूसरे के सिर में डालने लगे।
"ये चल क्या रहा है" जोशी जी ने दोनो को जोर से डांटते हुए कहा।
"रुचि पढ़ती है, नही पढ़ती, छठवीं में पढ़ती है….मतलब क्या है, रुचि जितने में मर्जी पढ़े" जोशी जी बोले।
समीर ने डरते हुए मास्टरजी से कहा- "सर् आपने ही तो कहा था कि हमे वहीं जाने में फायदा है जहाँ रुचि होगी, अब हमारी क्लास में तो कोई रुचि है नही….तो हमे तो छठवीं में जाना पड़ेगा ना"
"भेज दूँ….भेजूँ दोबारा छठ्ठी में ….बैठे रहना रुचि के साथ….जाना है क्या" जोशी जी को मन ही मन उनकी बातों में हँसी आ रही थी, मगर ऐसा जताने से बच्चे बिगड़ने लगते है, इसलिए उन्हें गलती पर सजा देना जरूरी है, इसलिए वो गुस्से में ही नजर आते है, अभी भी उन्होंने गुस्से का नाटक करते हुए दोनो को आगे बुला लिया।
"दोनो आगे आओ…अभी एक समीकरण पूछूंगा किसी को याद नही होगा, और बाते जितनी मर्जी बनवा लो" जोशी जी ने कहा।
दोनो आगे आये, और ब्लैकबोर्ड के सामने आकर खड़े हो गए।
"अब बताओ पढ़ने में रुचि है या घर बैठने में रुचि है" जोशी जी ने कहा।
दोनो ने एक साथ कहा- "पढ़ने में"
लेकिन अभी तो कह रहे थे छठवीं में है रुचि, अभी अभी पढ़ने में कैसे आ गयी" जोशी जी ने कहा।
यमराज और नंदू अंकल ये नजारा देख रहे थे।
नंदू अंकल बोला- "ये बेवकूफ है, या बच्चो को बेवकूफ बना रहा है.…."
"आप बस देखते जाओ नंदू अंकल, शर्त आप हारने वाले हो…." यमराज बोला।
"मेंरी हार में ही मेरी जीत है….काश की ये शर्त तू जीत जाए" नंदू बोला।
"अब ये क्या उटपटांग बात हुई….हार में जीत है…. भले मेरे हार में आपकी जीत किऐसे संभव है" यमराज बोला।
"शर्त क्या है दोहराना जरा, मेरे जीतने की कंडीशन क्या है" नंदू ने सवाल किया।
"यही की ये दोनो बच्चे अगर मार खाएंगे तो आप जीत जाओगे" यमराज ने कहा।
"बस इसी लिए मैं जीतना नही चाहता" नंदू ने कहा ।
कहानी जारी है
🤫
28-Sep-2021 06:40 PM
नंदू और यमराज....!क्या तानाबाना बुना है।सही कहा नंदू ने हर पिता की ख्वाहिश होती है उसके बच्चे सही रास्ते पर, सही तरीके से आगे बढ़े।
Reply
Seema Priyadarshini sahay
14-Sep-2021 09:59 PM
अच्छा भाग... बहुत ही रोचक
Reply
Miss Lipsa
13-Sep-2021 10:46 PM
Waaah...!! Amazing
Reply